दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में एक बार फिर से प्रदूषण की समस्या गेहरागई है। खास कर दिवाली के बाद से स्थिति और ज्यादा खराब हो चुकी है। लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। जनता की इस समस्या से लगता है सरकार को कोई लेना देना नहीं है क्योंकि अगर होता तो सरकार पहले से कुछ ठोस और पुख्ता इंतेजाम करती। और अचानक से ऐसी स्थिति में प्रदूषण को रोकथाम के लिए विशेष नियम लागू करने की जरूरत पड़ जाती है। दिल्ली के अनेकों इलाकों में एक्यूआई इंडेक्स 450 के पास दर्ज किया गया।
यह स्थिति उस समय है, जब सरकार को ‘ग्रैप 3’ स्तर की पाबंदियां लगानी पड़ी है। दिल्ली सरकार, नगर निगम और केंद्र सरकार के कार्यालयों के कामकाज के समय में बदलाव के प्रस्ताव से लेकर नियमों के उल्लंघन पर 20000 रुपये तक के जुर्माने, दिल्ली में 106 शटल बस सेवा शुरू करने, मेट्रो ट्रेन 60 अतिरिक्त फेरे, निजी स्तर पर निर्माण एवं विध्वंस कार्यों पर रोक, बी एस 3 पेट्रोल व बी एस 4 डीजल वाले चौपहिया वाहन के पर प्रतिबंध लगाने जैसे निर्णय शामिल है। यहां हम प्रदूषण को रोकने के लिए उठाए गए सरकार के कदमों पर सवाल नहीं उठा रहे हैं लेकिन बड़ा सवाल यही है कि आखिर स्थिति गंभीर हो जाने पर ही सरकार की आंखें क्यों खुलती हैं? पहले से इन सब व्यवस्थाओं को तय करके क्यों नहीं चलती जब पहले से पता है कि साल के इस महीना में ऐसी स्थिति दिल्लीप्रदूषण की समस्या से पार पाने का यही एक तरीका कारगर लगता है कि सरकार को कुछ महीने पहले से ही इस समस्या के समाधान की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

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